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इन्द्रा॑ग्नी रोच॒ना दि॒वः परि॒ वाजे॑षु भूषथः। तद्वां॑ चेति॒ प्र वी॒र्य॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī rocanā divaḥ pari vājeṣu bhūṣathaḥ | tad vāṁ ceti pra vīryam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। रो॒च॒ना। दि॒वः। परि॑। वाजे॑षु। भू॒ष॒थः॒। तत्। वा॒म्। चे॒ति॒। प्र। वी॒र्य॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:12» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेना और सेना के स्वामी ! जैसे (इन्द्राग्नी) वायु बिजुली (दिवः) प्रकाश के मध्य में (रोचना) प्रीतिकारक कर्मों को (परि) सब ओर से (भूषथः) शोभित करते हैं वैसे (वाजेषु) संग्रामों में विजय से सेना के पुरुष आप दोनों को शोभित करें और (तत्) वह कर्म (वाम्) आप दोनों के (प्र) उत्तम (वीर्य्यम्) पराक्रम को (चेति) सम्यक् जनाता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो राजा लोग राज्यकार्य्य में सब प्रकार से निपुण सेना और सेना के स्वामियों को अधिकार देते हैं, उनका सबकाल में विजय ही होता है ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र अग्नि अध्यापक उपदेशक और सेना तथा सेना के स्वामी के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्वसूक्त के अर्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह तीसरे मण्डल में बारहवाँ सूक्त पहिला अनुवाक और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सेनासेनाध्यक्षौ ! यथेन्द्राग्नी दिवो रोचना परिभूषथस्तथा वाजेषु विजयेन सेनाजना युवां परिभूषन्तु तद्वां प्रवीर्य्यञ्चेति ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (रोचना) रोचनानि रुचिकराणि कर्माणि (दिवः) प्रकाशस्य मध्ये (परि) (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (भूषथः) अलङ्कुरुथः (तत्) (वाम्) युवयोः (चेति) संज्ञपयति (प्र) प्रकृष्टम् (वीर्य्यम्) बलं पराक्रमम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये राजानो सेनासेनाध्यक्षान् सर्वथोत्तमान् सम्पादयन्ति तेषां सर्वदा विजय एव भवतीति ॥९॥ अत्रेन्द्राग्न्यध्यापकोपदेशकसेनासेनाध्यक्षगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति तृतीयमण्डले द्वादशं सूक्तं प्रथमोऽनुवाको द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजे राज्यकार्यात सर्व प्रकारे निपुण सेना व सेनेच्या स्वामींना अधिकार देतात त्यांचा सर्व काळी विजय होतो. ॥ ९ ॥